लोहड़ी का बदलता स्वरूप

अब नहीं सुनाई देती लोहड़ी नी लोहड़ी, तेरा मुंडा
पंजाब के लोगों में जोश व प्यार का प्रतीक लोहड़ी मांगना एक प्राचीनक…
पंजाब के लोगों में जोश व प्यार का प्रतीक लोहड़ी मांगना एक प्राचीनकाल प्रथा रही है। प्राचीन काल से लोहड़ी के पारंपरिक त्योहार के करीब 15 दिन पहले से ही लड़के-लड़कियों की टोलियां नवजात जन्में लड़कों व नव विवाहित जोडियों के घरों में जाकर देर रात्रि तक लोहड़ी के गीत सुंदर मुंदरिए हो, तेरा कौन विचारा हो, दुल्ला भट्ठी वाला हो, लोहड़ी नी लोहड़ी, तेरा मुंडा चड़उगा घोड़ी आदि गाकर लोहड़ी मांगते थे, तथा लोग खुशी-खुशी उन्हें अन्न, गोबर से बनी पाथियां, ईंधन, लकडियां, दाने, मूंगफली, रेवडियां, रुपये पैसे आदि देते थे। लेकिन आज के बदले हाईटेक टाइम में यह प्राचीन प्रथा अब शहरों में तो बिल्कुल ही दम तोड़ गई है। शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में लोहड़ी मांगने वाले युवक-युवतियों की टोलियां अब ढूंढने से भी नहीं मिलती है। परंतु युग हाईटेक होने के कारण अब लड़के-लड़किया शर्माने लगे व लोहड़ी मांगना ही नहीं चाहते।

बदल गया त्योहारों का परिवेश

– समाजसेवी संजय गर्ग ने कहा कि महंगाई के कारण अब कोई ऐसा नहीं करना चाहता है। उनका कहना है कि लोहड़ी के पर्व पर तब बच्चे लोहड़ी मांगकर एकत्रित किए इस सामान को मोहल्ले में एक जगह पर गोबर से बनी पाथियां, ईंधन, लकड़ियां आदि को जलाते थे जो कई-कई दिन तक देर तार तक जलाते रहते थे व उसके आस-पास बैठ कर दाने, मूंगफली व रेवडियां आदि को आपस में मिल बैठ कर खाते थे व कथा कहानियों का दौर रात भर चलता रहता था। अब तो बच्चों को स्कूलों में भी इतना ज्यादा होम वर्क दे दिया जाता है, उसके बाद उन्हें ट्यूशन पर जाना होता है, जिससे उन्हें समय निकाल पाना मुश्किल हो जाता है। परंतु अब बदलते जमाने व महंगाई के कारण न तो लड़के लड़कियां लोहड़ी मांगने जाते हैं और न ही लोग खुशी-खुशी लोहड़ी देते हैं। जिससे लोहड़ी का पारंपरिक स्वरूप ही बदल गय
अब नहीं सुनाई देती लोहड़ी नी लोहड़ी, तेरा मुंडा चड़िया घोड़ी
पंजाब के लोगों में जोश व प्यार का प्रतीक लोहड़ी मांगना एक प्राचीनक…
पंजाब के लोगों में जोश व प्यार का प्रतीक लोहड़ी मांगना एक प्राचीनकाल प्रथा रही है। प्राचीन काल से लोहड़ी के पारंपरिक त्योहार के करीब 15 दिन पहले से ही लड़के-लड़कियों की टोलियां नवजात जन्में लड़कों व नव विवाहित जोडियों के घरों में जाकर देर रात्रि तक लोहड़ी के गीत सुंदर मुंदरिए हो, तेरा कौन विचारा हो, दुल्ला भट्ठी वाला हो, लोहड़ी नी लोहड़ी, तेरा मुंडा चड़उगा घोड़ी आदि गाकर लोहड़ी मांगते थे, तथा लोग खुशी-खुशी उन्हें अन्न, गोबर से बनी पाथियां, ईंधन, लकडियां, दाने, मूंगफली, रेवडियां, रुपये पैसे आदि देते थे। लेकिन आज के बदले हाईटेक टाइम में यह प्राचीन प्रथा अब शहरों में तो बिल्कुल ही दम तोड़ गई है। शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में लोहड़ी मांगने वाले युवक-युवतियों की टोलियां अब ढूंढने से भी नहीं मिलती है। परंतु युग हाईटेक होने के कारण अब लड़के-लड़किया शर्माने लगे व लोहड़ी मांगना ही नहीं चाहते।
बदल गया त्योहारों का परिवेश

– समाजसेवी संजय गर्ग ने कहा कि महंगाई के कारण अब कोई ऐसा नहीं करना चाहता है। उनका कहना है कि लोहड़ी के पर्व पर तब बच्चे लोहड़ी मांगकर एकत्रित किए इस सामान को मोहल्ले में एक जगह पर गोबर से बनी पाथियां, ईंधन, लकड़ियां आदि को जलाते थे जो कई-कई दिन तक देर तार तक जलाते रहते थे व उसके आस-पास बैठ कर दाने, मूंगफली व रेवडियां आदि को आपस में मिल बैठ कर खाते थे व कथा कहानियों का दौर रात भर चलता रहता था। अब तो बच्चों को स्कूलों में भी इतना ज्यादा होम वर्क दे दिया जाता है, उसके बाद उन्हें ट्यूशन पर जाना होता है, जिससे उन्हें समय निकाल पाना मुश्किल हो जाता है। परंतु अब बदलते जमाने व महंगाई के कारण न तो लड़के लड़कियां लोहड़ी मांगने जाते हैं और न ही लोग खुशी-खुशी लोहड़ी देते हैं। जिससे लोहड़ी का पारंपरिक स्वरूप ही बदल गया है।
ममता सिंह
Chief beuro U P

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