5 January, 2018 13:23

कार्ड पर फिट नहीं बैठ रहा आर.एस.एस. का हिंदू एकीकरण फार्मूला
पंजाब से गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनाव की घोषणा के कुछ दिन बाद आर.एस.एस. प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि हिंदुस्तान हिंदू राष्ट्र है, जो भारतीय हैं उनके पूर्वज भी इसी भूमि के हैं, लिहाजा सब हिंदू कहलाएंगे। उन्होंने यह बयान हिंदू एकीकरण मिशन को पूरा करने के लिए दिया है लेकिन हिंदू एकीकरण का फार्मूला महाराष्ट्र में पहुंचते-पहुंचते फेल होता प्रतीत हो रहा है। बीते मंगलवार को महाराष्ट्र में दलित और मराठा के बीच हिंसक टकराव हुआ है। जात-पात के नाम पर हो रहे हिंसक टकराव के चलते दलित कार्ड का फार्मूला हिंदू एकीकरण मिशन पर फिट होता प्रतीत नहीं हो रहा है।
आर.एस.एस. प्रमुख ने ऐसा क्यों कहा, इसके पीछे राजनीतिक कारण यह समझा जा रहा था कि गुजरात में कांग्रेस 3 जातियों को इक_ा करके चुनाव लड़ रही थी जबकि भाजपा वहां पर हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण चाहती थी इसीलिए मतदान से पहले ङ्क्षहदू एकीकरण की बात आगे आई।
इस समय देश के कई कोनों में आरक्षण को लेकर अलग-अलग आंदोलन चल रहे हैं। हरियाणा में जाट आरक्षण को लेकर 2008 से आंदोलन चल रहा है। राजस्थान में भी ऐसे ही हालात बने हुए हैं। हिंदू समाज की कई जातियां अब अपने लिए आरक्षण की मांग कर रही हैं। कर्नाटक में तो अलग धर्म की मांग तक उठ चुकी है। संघ हिंदुओं में हो रहे जातीय संघर्ष को लेकर ङ्क्षचतित है क्योंकि उसको ऐसा लगता है कि हिंदुओं के जातियों में विभाजित होने का नुक्सान सीधे हिंदुओं को ही होगा।
संघ के इस मिशन के पीछे 2019 में सत्ता हासिल करना
संघ के हिंदू एकीकरण के पीछे मिशन 2019 है। संघ को पता है कि अगर देश का हिंदू विभाजित होता है तो इसका नुक्सान भाजपा को भी होगा। भाजपा को 2019 के लोकसभा चुनाव में इससे नुक्सान होगा। गुजरात चुनाव में भी जातिगत राजनीति होने के कारण भाजपा की सीटें कम हुई हैं। अब जाति की आग दूसरे राज्यों में भी पहुंच रही है। भाजपा यू.पी. में हिंदू एकीकरण के कारण ही सत्ता में आई है लेकिन पिछले महीने हुए स्थानीय निकाय के चुनाव में बसपा की वापसी ने भाजपा के लिए खतरे का संकेत दे दिया है। अगर भाजपा उत्तर प्रदेश में 2014 जितनी सीटें नहीं जीत पाई तो भाजपा का सत्ता में बने रहना कठिन होगा। जाति की आग महाराष्ट्र तक पहुंच गई है। महाराष्ट्र में भाजपा ने 2014 का चुनाव शिवसेना के साथ मिलकर लड़ा था। इस चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस को करारी हार दी थी लेकिन अब भाजपा के शिवसेना के साथ अच्छे संबंध नहीं हैं। इस बात की प्रबल संभावना है कि शिवसेना 2019 का चुनाव भाजपा से अलग होकर लड़े। ऐसे में जाति संघर्ष से भाजपा को नुक्सान हो सकता है। संघ को पता है कि भाजपा के सत्ता से बाहर होने से उसको भी नुक्सान होगा।
यू.पी.ए. के कार्यकाल में संघ को घेरने की रणनीति केंद्र सरकार ने तैयार कर ली थी। हिंदू आतंकवाद को लेकर संघ पर शिकंजा कसने की तैयारी थी। अगर 2014 के चुनाव में भाजपा केंद्र में सत्ता में न आती तो इस बात की प्रबल संभावना थी कि संघ के कई प्रचारकों से एन.आई.ए. पूछताछ करती। संघ प्रमुख मोहन भागवत भी उस समय सरकार के निशाने पर थे। सूत्रों का कहना है कि संघ को यह फीडबैक मिली है कि अगर हिंदुओं का एकीकरण नहीं हुआ तो भाजपा हिंदू मतों का ध्रुवीकरण नहीं कर पाएगी क्योंकि वर्तमान में पहले से अल्पसंख्यकों ने भाजपा के प्रति ध्रुवीकरण कर लिया है। गुजरात चुनाव में तो एक बिशप ने भाजपा को वोट न देने का वीडियो मैसेज भी जारी कर दिया था।
ओ.बी.सी. पर भी खास नजर, आने वाला बजट बढ़ेगा
गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ओ.बी.सी. कार्ड खेला, जिसमें वह सफल भी रही। इसी सफलता के चलते अब मिशन-2019 के मद्देनजर भाजपा के निशाने पर दलित वोट बैंक है। मिशन-2019 को पूरा करने के लिए भाजपा अभी से इस वोट बैंक को साधने की कोशिश में जुट गई है और इसके लिए प्लाङ्क्षनग तैयार कर ली गई है। साल 2018 के आम बजट में सरकार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों से संबंधित योजनाओं के लिए आबंटन राशि में भारी वृद्धि करने की तैयारी कर रही है। इसका एक बड़ा कारण दलित मतदाताओं को अपनी तरफ करना है। भाजपा सूत्रों का कहना है कि भाजपा हर हाल में दलित समुदाय को अपनी तरफ आकॢषत करना चाहती है इसलिए बजट को बढ़ाने के लिए कहा गया है। वित्त मंत्रालय ने भी सभी विभागों से कहा है कि 2018-19 के बजट आबंटन का मुख्य आधार गरीब तबकों के लिए योजनाएं ही होंगी। आम बजट फरवरी महीने में पेश होना है।
ये हैं इसके राजनीतिक कारण
दलित समुदाय के समर्थन का गणित भाजपा भुनाना चाहती है। इसलिए भाजपा हाईकमान ने यह फैसला किया है कि दलित समुदाय को अपनी तरफ आकॢषत किया जाए। दलित कार्ड खेलते हुए ही भाजपा ने दलित समुदाय के नेता को राष्ट्रपति बनाया था। अब केन्द्रीय योजनाओं में ज्यादा राशि रखकर यह साबित करने का प्रयास किया जाएगा कि भाजपा ही दलितों के हितों का ध्यान रख सकती है।
आधार डाटा लीकेज मामले पर पंजाब भाजपा ने साधी चुप्पी
: पंजाब आधार कार्ड को लेकर बेशक समय-समय पर केंद्र सरकार से लेकर भाजपा के लोग दावा करते रहे हैं कि आधार कार्डधारक का डाटा पूरी तरह से सुरक्षित है लेकिन मीडिया में आधार कार्ड के डाटा लीकेज को लेकर मचा बवाल भाजपा के लिए परेशानी का कारण बन गया है। मामले को लेकर भाजपा पंजाब की तरफ से मुंह नहीं खोला जा रहा है। मीडिया में इस बात को लेकर खुलासा हुआ है कि सिर्फ 500 रुपए लेकर गिरोह को चलाने वाले एजैंट लॉगइन आई.डी. और पासवर्ड मुहैया करवा रहे हैं जिसके जरिए किसी भी आधार नंबर की पूरी जानकारी ली जा सकती थी।
यह आधार कार्ड की गोपनीयता पर एक बड़ा सवाल है जिसका जवाब देने के लिए भाजपा के लोग तैयार तो नहीं हैं लेकिन सोशल मीडिया पर एक बड़ा खुलासा हुआ है। रिपोर्ट्स के मुताबिक आप मात्र 500 रुपए देकर किसी भी शख्स की आधार से जुड़ी जानकारी को खरीद सकते हैं। अंग्रेजी अखबार द ट्रिब्यून ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि उसके एक संवाददाता ने 500 रुपए में एक अज्ञात शख्स से व्हाट्सएप के जरिए एक ऐसा सॉफ्टवेयर लिया जिसके जरिए भारत के लगभग एक अरब लोगों की आधार डाटा की जानकारी ली जा सकती थी हालांकि आई.डी.ए.आई. ने इस रिपोर्ट को गलत बताया है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मात्र 500 रुपए में भारत में अब तक बनाए गए सभी के आधार के सारे विवरण को पढ़ा जा सकता था। रिपोर्ट में कहा गया है कि रिपोर्टर ने इस गिरोह को चलाने वाले एक एजैंट से सम्पर्क किया और उसे पेटीएम के जरिए 500 रुपए दिए।
10 मिनट के बाद एक शख्स ने उसे एक लॉगइन आई.डी. और पासवर्ड दिया। इसके जरिए पोर्टल पर किसी भी आधार नंबर की पूरी जानकारी ली जा सकती थी। इन जानकारियों में से नाम, पता, पोस्टल कोड, फोटो, फोन नंबर और ई-मेल शामिल है। यही नहीं जब उस एजैंट को 300 रुपए और दिए गए तो उसने ऐसा सॉफ्टवेयर दिया जिसके जरिए किसी भी शख्स के आधार को प्रिंट किया जा सकता था। भाजपा के नेताओं ने अब इस मामले में यू.आई.डी.ए.आई. की तरफ से जारी प्रतिक्रिया का हवाला देते हुए इस रिपोर्ट को गलत करार देना आरंभ कर दिया है। इससे पहले भी आधार डाटा के लीक होने की खबरें आई हैं। पिछले साल नवम्बर में भी यू.आई.डी.ए.आई. ने कहा था कि देश के नागरिकों का आधार डाटा सुरक्षित है। इस पूरे मामले पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विजय सांपला से सम्पर्क किया गया तो उनसे बात नहीं हो पाई। उनके पंजाब वाले मोबाइल नंबर पर उनके पी.ए. ने दिल्ली के नंबर पर सम्पर्क करने को कहा लेकिन वह नंबर बंद रहा। मामले को लेकर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ताओं से भी सम्पर्क की कोशिश की गई लेकिन उनसे भी सम्पर्क नहीं हो सका।

समारोह में दिखे केजरीवाल के चहेते रहे खालसा, 2019 में पार्टी बदलने की चली अटकलें
पटियाला :पंजाब के फतेहगढ़ साहिब से लोकसभा सांसद हरिंद्र सिंह खालसा ने बुधवार को लखनऊ में केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी द्वारा राज्यसभा नामांकन पत्र दाखिल करने दौरान उपस्थिति दर्ज करवा पंजाब की राजनीति में भूचाल ला दिया है। उनकी उपस्थिति से उनके बीजेपी में जानें की अटकले तेज हो गई हैं। खालसा पुरी के अच्छे दोस्त हैं, दोनों भारतीय विदेश सेवा के राजनयिक थे। ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में खालसा ने आईएफएस से इस्तीफा दे दिया था। भाजपा के समारोह में खालसा की उपस्थिति ने 2019 चुनाव दौरान उनके शामिल होने के कयास लगाए जा रहे हैं। खालसा 2014 के लोकसभा चुनाव दौरान आप की टिकट पर जीते थे जिनका पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल से विवाद हो गया था जिसके बाद इन्हें 2015 में पटियाला से सांसद डॉ धर्मवीर गांधी के साथ पार्टी से निलंबित कर दिया गया था। दोनों सांसदों ने शुरू में केजरीवाल के साथ सौहार्दपूर्ण संबंधों को बहाल करने के प्रयास किए, लेकिन उनके प्रयासों के असफल होने के बाद दोनों सांसदों ने आप को खुद से अलग कर दिया। पार्टी लाईन को छोड़कर वे अपने संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से काम करने लगे।
गांधी ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की है कि वे 201 9 लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे लेकिन खलसा ने ऐसा कोई वक्तव्य नहीं दिया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि वह एक और राजनीतिक दल में शामिल हो सकते हैं और लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं।
बता दें पुरी आईएफएस से रिटायर होने के चार साल बाद बीजेपी में शामिल हो गए थे। इस अवसर पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी उपस्थित थे। मोदी सरकार में आवास एवं शहरी विकास राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हरदीप सिंह पुरी ने बुधवार को लखनऊ के बीजेपी कार्यालय में यूपी से राज्यसभा के लिए नामांकन दाखिल किया। यूपी में राज्यसभा की यह सीट मनोहर पर्रिकर के रक्षामंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद 2 सितंबर को खाली हुई थी। इस सीट का वर्तमान कार्यकाल 25 नवंबर 2020 तक है। यानी हरदीप सिंह पुरी को बतौर राज्यसभा सदस्य दो साल से भी कम का कार्यकाल मिलेगा।

ममता सिंह
Chief beuro
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