उत्कल एक्सप्रेस रेल हादसे का सच

Report : Parveen Komal

पटरी से उतरे उत्कल के दो डिब्बे जगत सिंह के इंटर कालेज और आवास में घुस गए। हादसे के वक्त जगत सिंह के भतीजे प्रदीप अहलावत घर के दरवाजे पर ही खड़े थे। घटना के बारे में बताते हुए वे सिहर उठते हैं। बोले, ट्रैक की ओर मेरा मुंह था। ट्रेन पूरी रफ्तार में थी। इंजन के सामने से गुजरते ही ट्रैक पर बिछे कंकड़-पत्थर छिटकने लगे। झट से दरवाजा बंद किया ही था कि धमाके जैसी आवाज हुई। कान के पर्दे फटने से बचे। तीन मिनट तक जबर्दस्त शोर रहा। इसी बीच हमारा घर हिल गया। लगा कि कोई नींव से उखाड़ रहा हो। डर से आंखें बंद हो गईं। इसके बाद कुछ सेकेंड तक सन्नाटा पसर गया..फिर चीख पुकार की ऐसी आवाजें आने लगीं कि अपनी हालत भूल लोगों को बचाने में जुट गए। पर बाहर धूल का गुबार था। छंटा तो लोग पागलों की तरह अपनों को ढूंढ रहे थे। कोई जमीन पर गिरा पड़ा था तो कोई 20 फीट ऊपर डिब्बे की खिड़की से लटक रहा था। पर हमारा परिवार मदद में जुट गया। महिलाओं-बच्चों को घर ले आए। मरहम पट्टी से लेकर चाय-पानी तक का इंतजाम किया। घर में बस्ता, पुरी, जमशेदपुरी, मुरैना के लोगों ने रात तक शरण ली। बाद में प्रशासन ने इन्हें आगे भिजवाया।

 हवा की रफ्तार से दौड़ रही थी गाडी-उड़ीसा के कस्बा से पत्नी बासंती और बेटी निरुपमा के साथ जगाधरी जा रहे हरेंद्र जाना ने कहा कि वे एस-3 कोच में थे। वे जहां बैठे थे, वहां कोच पूरी तरह से पिचक गया था। जैसे-तैसे परिवार को लेकर निकले। बेटी निरुपमा ने कहा, मेरठ से छूटने के बाद ट्रेन की रफ्तार बढ़ती जा रही थी। हादसे के वक्त हवा की रफ्तार से ट्रेन दौड़ रही थी। अंधेरा छंटा तो हवा में थी जमशेदपुर से रुड़की जा रही अभिलाषा आइआइटी में कम्युनिकेशन इलेक्ट्रॉनिक्स ब्रांच की छात्रा हैं। वे एस-२ बॉगी में ही थीं जो पैंट्री कार पर चढ़कर हवा में झूल रही थी।

 अभिलाषा बोलीं, वे अपनी सीट पर बैठी थीं, तभी जोर की आवाज हुई। लोग एक-दूसरे पर गिरने लगे। शुक्र है मैं जिन्दा  हूं। निकले थे तीर्थ करने, ये क्या हो गया जनता कन्या इंटर कालेज में लगे शिविर में मुन्नी देवी, शीतला देवी, बहोरनी देवी आदि महिलाएं बैठी थीं। 32 लोगों का इनका दल मुरैना, मप्र से हरिद्वार तीर्थ करने निकला था फिलहाल साथ में 18 लोग ही हैं, बाकी कहां हैं पता नहीं। उनकी सखी शीतला, उर्मिला, माधुरी बोलीं, हमारी हिम्मत टूटी नहीं है। सुबह ही हम हरिद्वार के लिए निकलेंगे। रातभर में अपने बाकी साथियों को खोजेंगे।

राशिद अली, मुजफ्फरनगर। जिला अस्पताल पहुंचे मध्यप्रदेश के मुरेना निवासी प्रदीप शर्मा ने कांपते हुए बताया कि वे पत्नी रेखा शर्मा व तीन वर्षीय पुत्री अमन के साथ एस-2 बोगी में थे। अचानक जोर का झटका लगा। बोगी पलटने पर महसूस हुआ कि जैसे चेन पुलिंग हुई हो। पैंट्री कार में कार्यरत घायल त्रिवेन्द्र ने बताया कि वह एस-१ बोगी में थे, जोर का झटका लगा और मौत के डर से आंखें बंद हो गईं, कुछ सेकेंड के लिए लगा कि इस दुनिया में नहीं हूं। जगन्नाथ पुरी के रहने वाले मधु मंडल ने बताया कि वह तीन साथियों संग एस-१ बोगी में थे। हादसे के आधा घंटा बाद तक बाहर नहीं निकल सके। करंट भी दौड़ रहा था, कोई भी मदद को करीब नहीं आ रहा था। पूरे डिब्बे में चीख-पुकार मची हुई थी। गार्ड ने वायरलेस कर विद्युत आपूर्ति बंद कराई। इमरजेंसी वार्ड में भर्ती ग्वालियर निवासी नारायण शर्मा भी हादसे को याद कर सिहर उठते हैं।

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के खतौली में उत्कल एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण देहरादून शताब्दी और देहरादून जनशताब्दी सहित कई ट्रेनों के मार्ग में बदलाव किया गया है।
इन ट्रेनों के मार्ग में बदलाव
1. नई दिल्ली-जालंधर इंटरसिटी एक्सप्रेस (14681) गाजियाबाद, कुरुक्षेत्र के रास्ते अंबाला तक चलेगी।
2.नई दिल्ली-देहरादून जनशताब्दी एक्सप्रेस (12055) हापुड़, मुरादाबाद के रास्ते चलाई गई।
3.पुरानी दिल्ली-जम्मूतवी शालीमार एक्सप्रेस (14645) गाजियाबाद, कुरुक्षेत्र, अंबाला के रास्ते चलाई गई।
4. नई दिल्ली-देहरादून नंदा देवी एक्सप्रेस (12205) शामली, टपरी के रास्ते चलाई गई।
5. देहरादून-नई दिल्ली शताब्दी एक्सप्रेस (12018) शामली नई दिल्ली के रास्ते नई दिल्ली पहुंची।
6. देहरादून-बांद्रा टर्मिनल एक्सप्रेस (19020) शामली, निजामुद्दीन के रास्ते चलाई गई।
7. मुंबई सेंट्रल-अमृतसर गोल्डन टैंपल एक्सप्रेस (12903) नई दिल्ली, कुरुक्षेत्र, अंबाला के रास्ते चलेगी।
8. बिलासपुर-अमृतसर छतीसगढ़ एक्सप्रेस (18237) नई दिल्ली, कुरुक्षेत्र, अंबाला के रास्ते चलेगी।
9. हरिद्वार-अहमदाबाद योगा एक्सप्रेस (19032) शामली, दिल्ली शाहदरा, पुरानी दिल्ली के रास्ते चलेगी।
10. सहारनपुर-इलाहाबाद नौचंदी एक्सप्रेस (14512) को सहारनपुर से मेरठ सिटी के बीच में निरस्त कर दिया गया है।

पटरियों की खुली कपलिंग..किनारे रखीं मशीनें..सुबह से ही खटर-पटर, काम करते कर्मचारी। इस दृश्य को देख आसपास के लोग सुबह से ही सतर्क थे, लेकिन बुलेट ट्रेन दौड़ाने का सपना बुन रहा भारतीय रेल कैजुअल था। पटरियों पर कामकाज के दौरान जिस रफ्तार में उत्कल एक्सप्रेस दौड़ी, उससे यह घटना तो होनी ही थी। अब रेलवे भी मान रहा है कि चूक हो गई है। पटरी पर काम हो रहा था तो ट्रेन को कॉशन यानी सतर्क होने का संदेश दिया जाना चाहिए था।

उत्कल एक्सप्रेस मेरठ से खुली तो लगभग 45 मिनट लेट थी। रेलवे का नियम कहता है कि अगर आगे काम चल रहा है तो मेरठ कैंट स्टेशन से ट्रेन के चालक-गार्ड को कॉशन दिया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसके चलते चालक रफ्तार से बढ़ता चला गया। शुरू के चार डिब्बे तो निकल गए, लेकिन पीछे के डिब्बे ताश के पत्तों की तरह बिखर गए। सबसे अधिक क्षतिग्रस्त कोच एस-2-3-4, पैंट्री कार, बी-1, ए-1 थे।

 पटरी किनारे पड़ी थी झंडी-मशीन

ट्रैक मरम्मत के समय ट्रेन को आगाह करने के लिए मौके से काफी दूर पहले ही लाल रंग का कपड़ा भी लगाया जाता है। घटनास्थल पर लाल रंग के कपड़े की झंडी और मरम्मत के काम आने वाली मशीन गवाही दे रही है कि काम तो चल रहा था, लेकिन खतरे के निशान लाल झंडे का इस्तेमाल नहीं हुआ। यही आरोप कुछ ही दूर पर काम करने वाले बेलदार अनीस, रिजवान और पास ही रहने वाले तनजीम का भी है। इन्होंने कहा कि सुबह भी काम करने वालों से हादसे की आशंका जताई थी, लेकिन अनसुना कर दिया गया

 पहली बार देखी घर में घुसी ट्रेन

भारतीय रेल के इतिहास में शायद यह पहली घटना है, जिसमें डिरेल होकर ट्रेन के डिब्बे पास के घर और स्कूल में घुस गए। मौके पर पहुंचे आम लोग हों या आला अधिकारी सभी की जुबां पर यही बात थी कि पहली बार देखी है कि पटरी से उतरकर ट्रेन घर में घुसी। जिस घर-स्कूल में डिब्बे घुसे वे दोनों ही सभ्रांत नागरिक जगत सिंह  के हैं। घटना चूंकि शाम को हुई इसलिए स्कूल खाली था और घर में भी किसी को ज्यादा चोट नहीं आई। घर का मलबा गिरने से बस जगत सिंह  को पांव में चोट आई है। घर और स्कूल में घुसे इन्हीं दो डिब्बों से देर रात तक शवों को निकालने का सिलसिला जारी रहा। रात 10 बजे तक साइकिल चालक और महिला का शव फंसा रहा।

सबने माना, चल रहा था काम

स्थानीय लोगों का भी कहना है कि जिस पटरी पर हादसा हुआ है, उस पर काम चल रहा था। वहां अब भी उपकरण और झंडे पड़े हुए हैं। वैसे रेलवे सेफ्टी विभाग ही दुर्घटना की सही वजह बता पाएगा –प्रशांत कुमार, एडीजी मेरठ जोन।

पटरी पर काम चल रहा था तो ड्राइवर को कॉशन दिया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं है। यह बड़ी लापरवाही है। दुर्घटना के समय ट्रेन 100 किमी प्रति घंटा की स्पीड से दौड़ रही थी। सामान्य स्थिति में उसे इतनी ही स्पीड में दौड़ना चाहिए, लेकिन मरम्मत आदि के समय स्पीड कम करा दी जाती है। प्रथमदृष्टया तो लापरवाही ही प्रतीत हो रही है, जांच में सारी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी – नीरज गुप्ता, जनसंपर्क अधिकारी उत्तर रेलवे।

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