अंसारी की बिल्ली थैले से बाहर

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Report : Parveen Komal

अपनी 10 साल की लंबी पारी के अंतिम लम्हों में भारत के एक्‍स हो चुके उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने अपने मुंह पर खुद कालिख पोत ली. अंसारी का दूसरा कार्यकाल आज पूरा हो रहा है. लेकिन इससे एक दिन पहले उनका बयान सुर्खियां बन रहा है. एक टीवी इंटरव्यू हामिद अंसारी ने कहा कि ‘देश के मुस्लिमों में बेचैनी का अहसास और असुरक्षा की भावना है. कैसी विडम्बना है कि हामिद ने ऐसी भड़काऊ बात उस हिंदुस्तान के बारे में कही है जिसके तीन तीन मुस्लिम राष्ट्रपति रह चुके हैं. जिसकी सेना में देश भक्त जवानों की भरमार है. जिसके परमाणु कार्यक्रम का जनक अब्दुल कलाम जैसा एक मुस्लिम देश भक्त है. जिसके ढेरों मुस्लिम फ़िल्मी अदाकार, फनकार, गीतकार, शायर और गायक करोड़ों हिंदुओं के दिलों की धड़कन हैं और जिस देश के हिंदू और गैर सांप्रदायिक मुसलमानों में आज भी भाईचारा कायम है

अंसारी ने कहा कि उन्होंने असहनशीलता का मुद्दा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कैबिनेट सहयोगियों के सामने उठाया है . उन्होंने इसे ‘‘परेशान करने वाला विचार’’करार दिया जिसके बाद से ही वो सोशल मीडिया पर उनके इस बयान पर सवाल किये जाने लगे. असल में अंसारी की सांप्रदायिक बिल्ली के थैले से बाहर आते ही भारत के लोगों को पता चल गया कि हमीद के मन मे 10 साल कैसे सांप्रदायिक सांप कुलबुलाता रहा लेकिन सरकारी सहूलियतों के लालच में पद बचाए रखने की मजबूरी के कारण अंसारी को उस नाग का फ़न दबा कर रखने को मजबूर होना पड़ा.

यथार्थ के धरातल पर सच्चाई ये है कि मुस्लिमों के लिए पूरी दुनिया में भारत जैसा कोई देश नहीं है. हामिद अंसारी का यह बयान उनके पद के बिल्कुल भी अनुकूल नहीं है इसलिए आज जगह जगह अंसारी की लानत मलामत हो रही है. हामिद अंसारी ने साबित कर दिया है कि कैसे कोई महज़ कुर्सी के लिए सांप्रदायिक खेल खेलता है.
दुख की बात ये है कि भारत माता की आस्तीन में कई तरह के रंग बिरंगे सांप पल रहे हैँ लेकिन हमीद अंसारी से ये उम्मीद नहीं थी कि वो अपनी केंचुली बरसात के मौसम में ही बदल लेंगे. इस से ये भी साबित होता है कि एक जैसे नाम रख लेने से विचार एक जैसे नहीं हो सकते इसलिए एक्‍स उप राष्ट्रपति हमीद अंसारी और हिंदुस्तान के अमर शहीद अब्दुल हमीद के किरदार में जमीन आसमान का अंतर है.

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