महिलाओं पर घरेलू हिंसा- शर्मनाक नीचता

3.2 घरेलू हिंसा
घरेलू दायरे में हिंसा को घरेलू हिंसा कहा जाता है. किसी महिला का शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, मौखिक, मनोवैज्ञानिक या यौन शोषण किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाना जिसके साथ महिला के पारिवारिक सम्बन्ध हैं, घरेलू हिंसा में शामिल है.
3.2.1 घरेलू हिंसा की कानूनी परिभाषा
“घरेलू हिंसा के विरुद्ध महिला संरक्षण अधिनियम की धारा, 2005” घरेलू हिंसा को पारिभाषित किया गया है -“प्रतिवादी का कोई बर्ताव, भूल या किसी और को काम करने के लिए नियुक्त करना, घरेलू हिंसा में माना जाएगा –
(क) क्षति पहुँचाना या जख्मी करना या पीड़ित व्यक्ति को स्वास्थ्य, जीवन, अंगों या हित को मानसिक या शारीरिक तौर से खतरे में डालना या ऐसा करने की नीयत रखना और इसमें शारीरिक, यौनिक, मौखिक और भावनात्मक और आर्थिक शोषण शामिल है; या
(ख) दहेज़ या अन्य संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की अवैध मांग को पूरा करने के लिए महिला या उसके रिश्तेदारों को मजबूर करने के लिए यातना देना, नुक्सान पहुँचाना या जोखिम में डालना ; या
(ग) पीड़ित या उसके निकट सम्बन्धियों पर उपरोक्त वाक्यांश (क) या (ख) में सम्मिलित किसी आचरण के द्वारा दी गयी धमकी का प्रभाव होना; या
(घ) पीड़ित को शारीरिक या मानसिक तौर पर घायल करना या नुक्सान पहुँचाना”
शिकायत किया गया कोई व्यव्हार या आचरण घरेलू हिंसा के दायरे में आता है या नहीं, इसका निर्णय प्रत्येक मामले के तथ्य विशेष के आधार पर किया जाता है.
3.2.2 कौन घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज करा सकता है?
इस अधिनियम के तहत यह जरूरी नहीं है की पीड़ित व्यक्ति ही शिकायत दर्ज कराये. कोई भी व्यक्ति चाहे वह पीड़ित से संबंधित हो या नहीं, घरेलू हिंसा की जानकारी इस अधिनियम के तहत नियुक्त सम्बद्ध अधिकारी को दे सकता है.
यह कोई जरूरी नहीं है कि घरेलू हिंसा वास्तव में ही घट रही हो, घटना होने की आशंका के सम्बन्ध में भी जानकारी दी जा सकती है. आरोपी व्यक्ति से घरेलू संबंध में रहने वाली महिला के द्वारा अथवा उसके प्रतिनिधि ghद्वारा इस सम्बन्ध में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. निम्न महिला संबंधी शिकायत कर सकते हैं:
- पत्नियाँ/ लिव इन पार्टनर्स
- बहनें
- माताएं
- बेटियां
इस प्रकार इस अधिनियम का मकसद पारिवारिक ढांचे के अन्दर रह रही सभी स्त्रियों, चाहे वह आपस में सगी संबंधी, विवाह, दत्तक या वैसे भी साथ में रह रही हों, सभी को सुरक्षा देना है.
3.2.3 घरेलू हादसों के रिपोर्ट
जब पीड़िता घरेलू हिंसा की शिकायत करना चाहती हो तो रिपोर्ट दर्ज की जानी चाहिए. घरेलू हिंसा के विरुध्द संरक्षण नियम, 2006 के फॉर्म 1 में रिपोर्ट का स्वरूप दिया गया है.
पीड़िता की शिकायत में उसकी व्यक्तिगत जानकारियों जैसे नाम, आयु, पता, फोन नंबर, बच्चों की जानकारी, घरेलू हिंसा की घटना का पूरा ब्यौरा, और प्रतिवादी का भी विवरण दिये जाने की जरुरत होती है. जब जरुरत हो तो संबंधी दस्तावेज जैसे चिकित्सकीय विधिक दस्तावेज, डॉक्टर के निर्देश या स्त्रीधन की सूची को रिपोर्ट के साथ नत्थी करना चाहिए. शिकायत में पीड़िता को मिली राहत या सहायता का भी विशेष उल्लेख किया जाना चाहिए. इस रिपोर्ट पर पीड़िता के हस्ताक्षर के साथ-साथ सुरक्षा अधिकारी के भी दस्तखत होने चाहिए. इस रिपोर्ट की प्रति स्थानीय पुलिस थाने और मजिस्ट्रेट को उचित कार्रवाई के लिए दी जानी चाहिए. एक प्रति पीड़िता और एक कॉपी सुरक्षा अधिकारी या सेवा प्रदाता के पास रहनी चाहिए.
3.2.4 घरेलू हिंसा अधिनियम , 2005 के तहत महिलाओं का सरंक्षण
घरेलू हिंसा की शिकार महिला को निम्नलिखित सूची में से एक या एकाधिक सहायता उपलब्ध कराई जा सकती है-
उपरोक्त सभी बातों के अलावा पीड़िता भारतीय दंड संहिता, 1860 धारा 498-A के तहत आरोपी के विरुद्ध आपराधिक मामलों को दर्ज को कराने का भी अधिकार देती है.
3.2.5 राहत पाने की प्रक्रिया
इसके अलावा मजिस्ट्रेट :
- प्रतिवादी को परामर्श के लिए भेज सकता है.
- परिवार कल्याण में रत किसी सामाजिक कार्यकर्त्ता, विशेषकर किसी महिला को सहायता के लिए नियुक्त कर सकता है.
- जहाँ आवश्यक हो कार्यवाही के दौरान कैमरे के प्रयोग का आदेश दिया जा सकता है.
मजिस्ट्रेट द्वारा पीड़िता या प्रतिवाद के लिए पारित आदेश के खिलाफ, आदेश जारी होने के 30 दिनों के भीतर सत्र न्यायालय में अपील की जा सकती है.
3.2.6 अधिनियम के तहत कार्यरत संस्थाएं
घरेलू हिंसा के शिकार किसी भी व्यक्ति को कानूनी सहायता, मदद, आश्रय या चिकित्सकीय सहायता देना राज्य की जिम्मेदाररी है. इस उद्देश्य के साथ राज्य सरकार को निम्न सस्थाओं को नियुक्त करने के लिए प्राधिकृत किया गया है जो कि पीड़िता को विधि के अंतर्गत सहायता पाने के उसके अधिकार के बारे में जानकारी के साथ सहायता पाने में मदद कर सके.
1.पुलिस अधिकारी (धारा 5)
जब भी किसी पुलिस अधिकारी को घरेलू हिंसा की घटना की जानकारी मिलती है तो यह उसक दायित्व है कि आपराधिक दंड प्रक्रिया, 1973 के प्रावधानों के अनुसार जाँच करे. इसके अतिरिक्त, घरेलू हिंसा अधिनियम पुलिस अधिकारी को दायित्व देता है कि वह पीड़िता को
(क) नि:शुल्क विधि सेवाओं के बारे में जानकारी दे;
(ख) इस अधिनियम के तहत उसकी हानि और वेदनाओं के लिए मुआवजे और नुक्सान के एवज में आवास आदेश, सुरक्षा आदेश, संरक्षण आदेश और आर्थिक राहत जैसी सहायता मुहैय्या कराये.
(ग) सुरक्षा अधिकारियों और सेवा प्रदाताओं की सेवाएं उपलब्ध कराये; और
(घ) अगर जरूरी हो तो आरोपी व्यक्ति के खिलाफ धारा 498 A के तहत आपराधिक मामला दर्ज करे. (केवल पत्नी ही अपने पति या उसके परिजनों के खिलाफ धारा 498 A के तहत शिकायत कर सकती है. यह अधिकार लिव इन पार्टनर्स को उपलब्ध नहीं है.)
- सुरक्षा अधिकारी (धारा 9)
घरेलू हिंसा अधिनियम में सुरक्षा अधिकारी अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं. ये सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के साथ काम करते हैं. ये योग्य होते हैं और इनके पास सामाजिक क्षेत्र में काम करने का कम से कम तीन सालों का अनुभव होता है. राज्य सरकार ऐसे अधिकारियों को जो ज्यादातर महिलाएं होती हैं, हर जिले में न्यनतम तीन सालों के लिए तैनात करता है और उनके काम का संज्ञान लिया जाता है.
सुरक्षा अधिकारी का काम पीड़िता की हर कदम पर मदद करना है. वे पीड़िता की घरेलू हिंसा की रिपोर्ट को तयशुदा ढांचे में दर्ज करवाने में मदद करते हैं. वे पीड़ित को उनके अधिकारों की जानकारी देते हैं और इस अधिनियम के तहत सहायता को उपलब्ध करवाने के लिए पीड़िता को आवेदन लिखने में सहायता करते हैं. ये अधिकारी घरेलू हिंसा के मामले के निबटारे में मजिस्ट्रेट की भी सहायता करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किये गए आदेशों का अनुपालन पीड़िता के हित में हो.
स्थिति का जायजा लेने के और घरेलू हिंसा नियम, 2005 के फॉर्म V के अनुसार सुरक्षा योजना बनाने के लिए भी सुरक्षा अधिकारियों की आवश्यकता होती है. यह सब घरेलू हिंसा की आवृत्ति को रोकने के लिए उचित उपाय की सलाह देने और उन पर अमल करने के उद्देश्य से किया जाता है.
सुरक्षा अधिकारी पीड़िता को हर मुमकिन सहायता देने के लिए बाध्य हैं जिसमें उसके चिकित्सकीय परीक्षण से लेकर, उसके आवागमन और आश्रय स्थल में आवास की व्यवस्था करना शामिल है बशर्ते कि वह अपने घर पर सुरक्षित न हो. सबसे पहले सुरक्षा अधिकारी को कानूनी सहायता सेवाओं, परामर्श, चिकित्सा सहायता, या जरूरतमंद पीड़ित के आश्रय के लिए अपने क्षेत्राधिकार में शामिल सभी सेवा प्रदाताओं की सूची तैयार करनी होती है
आकृति: 1.5 | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
सुरक्षा अधिकारियों की सूची, समाज कल्याण विभाग, दिल्ली सरकार | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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1.सेवा प्रदाता (धारा 10)
सेवा प्रदाता महिलाओं के अधिकारों और हितों की सुरक्षा के लिए राज्य सरकार द्वारा पंजीकृत स्वैच्छिक संगठन हैं. ये संगठन निरोधात्मक, सुरक्षात्मक और पुनर्वास का काम करते हैं. ये घरेलू हिंसा की शिकार औरतों की सहायता करने और उन्हें कानूनी, समाजिक, चिकित्सकीय और आर्थिक सहायता देने के लिए उत्तरदायी हैं. ये संस्थाएं निश्चित आवेदन के प्रारूप में DIR को दर्ज करा सकती हैं और उसे सीधे आवश्यक कार्रवाई के लिए सम्बद्ध और मजिस्ट्रेट और सुरक्षा अधिकारी को भेज सकती हैं. अगर पीड़िता चाहे तो ये संस्थाएं उसे चिकत्सकीय सहायता और शरणगृहों में आवास का प्रबंध कर सकती हैं.
राज्य सरकार सेवा प्रदाताओं की सूची बनाती है और उसे क्षेत्र विशेष के सुरक्षा अधिकारी के पास भेजती है ताकि वे आपसी तालमेल के साथ काम कर सकें. किसी क्षेत्र विशेष के सेवा प्रदाताओं की सूची को जानकारी और आवश्यक कार्रवाई के लिए अखबार में प्रकाशित करना होता है या राज्य सरकार की वेबसाइट पर उपलब्ध कराना होता है
2.परामर्शदाता (धारा 14)
परामर्शदाता सेवा प्रदाताओं के ऐसे सदस्य हैं जो कि घरेलू हिंसा के मामलों से निबटने में योग्य एवम अनुभवी होते हैं इसलिए वे घरेलू हिंसा की पीड़िता या दोषी व्यक्ति को परामर्श सेवाएं देने में दक्ष होते हैं. इस अधिनियम के दौरान अगर मजिस्ट्रेट को ऐसा महसूस होता है कि पीड़िता या पीड़क व्यक्ति को परामर्श की आवश्यकता है तो वह उन्हें एकल या संयुक्त रूप से सेवा प्रदाताओं द्वारा उपलब्ध कराये गए परामर्शदाता के पास परामर्श सत्रों में भाग लेने का सीधे तौर पर निर्देश जारी कर सकता है. परामर्शदाता दोनों पक्षों के लिए सहज स्थान पर मुलाकात का आयोजन करता है और वह पीड़ित की शिकायत के निवारण के लिए उपाय सुझाता है और जहाँ पर पीड़ित राजी हो, वह वहाँ पर समझौते का भी प्रबंध करता है. इस प्रकार के परामर्श का उद्देश्य पीड़ित व्यक्ति के विरुद्ध घरेलू हिंसा के उन्मूलन के उपायों को खोजना और विकसित करना है,
3.कल्याण विशेषज्ञ (धारा 15)
कल्याण विशेषज्ञ पारिवारिक मामलों को सुलझाने में दक्षता और विशेषज्ञता प्राप्त व्यक्ति होते हैं. इस अधिनियम के तहत आवश्यकता पड़ने पर मजिस्ट्रेट कल्याण विशेषज्ञों की सहायता ले सकते हैं. इस अधिनियम के तहत जहाँ तक संभव हो महिला विशेषज्ञों का ही चुनाव किया जाता है.
4.आश्रय और चिकित्सा सुविधा प्रभारी
घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 6 और 7 के अनुसार आश्रय और चिकित्सा सुविधा प्रभारी का दायित्व है कि स्वयम पीड़िता या सुरक्षा अधिकारी या उसकी ओर से सेवा प्रदाता के अनुरोध के आधार पर पीड़िता को आश्रय और चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराये.