चौथे स्तम्भ को इंसाफ चाहिये
*राजधानी लखनऊ डीजीपी ऑफिस*
*पत्रकारों के हितों की बात बंद कमरे में नहीं होती…. अभी तक परंपरा थी कि पत्रकार हितों की बात दो चार पांच लोग कमरे में बैठकर अधिकारियों के साथ बातचीत करके करते थे लेकिन अब एक नई परंपरा की शुरुआत हुई है*
*जगह कमरे में नहीं बल्कि दिल में होनी चाहिए आज गाजियाबाद में पत्रकार के ऊपर हुए हमले के विरोध में करीब 7 से 70 पत्रकार डीजीपी कार्यालय पहुंचे हालांकि पहले से ही उन्हें इत्तला कर दी गई थी कि पत्रकार अंदर ना जाने पाए लेकिन फिर भी हमारी एकजुटता काम आई हम अंदर गए हमने तमाम पत्रकारों की सुरक्षा की बात थी वह रखी उसके अलावा गाजियाबाद में एक पत्रकार जो इस समय नेशनल वॉइस में कार्यरत है*
*उसको भी और उसके परिवार को लगातार जान से मारने की धमकी दी जा रही है यह बात भी अधिकारियों तक पहुंचाई और अधिकारियों ने भी तत्काल उसे सुरक्षा मुहैया कराने के निर्देश दे दिए हैं फिलहाल पत्रकारिता की राजनीति में एक पारदर्शी तरीके की शुरुआत हो गई है अब सिर्फ चंद लोग नहीं तय करेंगे पत्रकारों के लिए क्या फायदेमंद है और क्या नुकसान देह पत्रकारों का हक तय करने वाले कुछ चुनिंदा लोग अब लोगों की नजरों से गिरने लगे हैं*
मिन्टू शर्मा