17 December, 2017 18:36

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तीन तलाक तीन साल की सजा पर विशेष-
देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पिछले दिनों तीन तलाक को असंवैधानिक करार देने के बाद भी हो रही तमाम तलाक की घटनाओं को देखते हुए सरकार ने आखिरकार इसे कानूनी जामा पहनाने की विधिक कार्यवाही शुरू कर दी है। केन्द्र सरकार ने तीन तलाक को गैरकानूनी मानते हुए इसका उल्लंघन करने वालों को तीन साल की सजा देने का प्रस्ताव किया गया है।इस प्रस्ताव को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है और इस नये कानून का प्रारूप या रूपरेखा तैयार करके प्रस्तुत करने के लिए केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में एक छः सदस्यीय मंत्रियों की समिति का गठन किया गया है। यह समिति इस नये तीन तलाक कानून का मसौदा तैयार करके संसद के चालू सत्र में प्रस्तुत करेगी।तीन तलाक को लेकर सरकार के इस प्रस्तावित विधेयक को मुस्लिम वुमेन प्रोटेक्शन आफ राइट्स आँन मैरिज का नाम दिया गया है।इस प्रस्तावित कानून में पुराने तीन तलाक के मामलों में भी भरण पोषण और बच्चों की कस्टडी की मांग करने का भी प्रावधान किया गया है।इस मामले में दुखद पहलू यह है कि धारा तीन सौ सत्तर के चलते यह प्रस्तावित कानून जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू किया जायेगा। यह प्रस्तावित कानून सिर्फ एक बार में ही तीन तलाक जुबानी या लिखित या इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों पर दिये गये तलाक पर लागू होगा।जो व्यक्ति एक बार में ही तीन बार तलाक तलाक कहकर संबंध विच्छेद करेगा वह तीन साल की सजा और जुर्माने का हकदार होगा।यह प्रस्तावित कानून बन जाने के बाद तीन तलाक कानून संज्ञेय गैर जमानती अपराध हो जायेगा। कैबिनेट के इस महत्वपूर्ण फैसले को लेकर एक बार तुष्टिकरण राजनीति गर्म हो गयी है और जहाँ कुछ मुस्लिम संगठन एवं राजनैतिक दल इसका समर्थन कर रहें हैं तो कुछ इसका विरोध कर इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पर हमला मानकर रहें हैं। तीन तलाक कानून बनाने की पहल मुस्लिम समुदाय की कुछ पीड़ित महिलाओं की लगातार आ रही शिकायतों पर किया गया है। तीन तलाक व्यवस्था का विरोध महिलाओं द्वारा एक लम्बे अरसे से किया जा रहा है किन्तु तुष्टिकरण राजनीति के आगे सभी राजनैतिक दल बौने साबित बने थे। लेकिन भाजपा ने सरकार में आने से पहले चुनाव के समय से ही तीन तलाक को अपना चुनावी मुद्दा बना लिया था और तीन तलाक मामले के चलते तमाम मुस्लिम महिलाओं ने चुनाव में भाजपा को वोट भी दिया था। सरकार तीन तलाक के नाम पर मुस्लिम समाज में दो राजनैतिक फाड़ करने में सफल रही है। सरकार चुनावी वायदे के अनुरूप तीन तलाक को गैर जमानती संज्ञेय अपराध बनाने के उद्देश्य से कैबिनेट से मंजूरी लेकर कानूनी जामा पहनाने का भगीरथी प्रयास शुरू कर दिया है।यह सही है कि अगर लोकसभा व राज्यसभा में प्रस्तावित मसौदा स्वीकृत हो जाता है तो तीन तलाक विरोधी मुस्लिम तबके का समर्थन आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा को मिल सकता है। सरकार दोनों उच्च सदनों में इस प्रस्तावित बिल को मंजूरी दिलाने की पुरजोर कोशिश करेगी इसमें दो राय नहीं है।अगर दोनों सदनों से इस बिल को मंजूरी नहीं भी मिलती है तब भी इसका चुनावी लाभ भाजपा को मिल सकता है वैसे दोनों उच्च सदनों में भाजपा का दबदबा है और बिल को पास कराने की ताकत है।सभी जानते हैं कि महिलाओं के पास उनकी आबरू ही होती है जो उनकी थाती होती है। जब महिला अपनी बेशक कीमती आबरू किसी पुरूष को समर्पित कर देती है तो उसकी आबरू की रक्षा करना उस पुरूष का दायित्व होता जिसे वह पति परमेश्वर मानकर उसके विश्वास पर अपना सबकुछ लुटा देती है।आबरू लुटने के बाद महिला के पास इज्जत या अनमोल कीमती थाती नही बचती है। महिला महिला होती है चाहे वह हिन्दू या मुसलमान सिख ईसाई हो सबके पास उसकी इज्जत ही उसके महिला जीवन की बहुमूल्य थाती होती है।हमारे यहाँ पर शादी ब्याह या दाम्पत्य सूत्र बंधन मात्र खाना आबादी या कामवासन तृप्ति का साधन नहीं बल्कि एक संस्कार होता है जिससे दोनों जन्म जन्मातर के रिश्ते में बंध जाते हैं। इसके बावजूद तमाम ऐसी परिस्तिथियाँ होती है जिनकी वजह से तलाक यानी संबंध विच्छेद करना पड़ता है चाहे हिन्दू हो चाहे मुसलमान सिख ईसाई हो। महिलाओं की भाग्य का फैसला पुरूषों के रहमोकरम पर छोड़ना कतई उचित नहीं कहा जा सकता है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में भी एक बार में तीन बार तलाक तलाक कहकर रिश्ता तोड़ने की कोई व्यवस्था नहीं है लेकिन इसके बावजूद तमाम तलाक के मामले ऐसे सामने आये हैं जिनमें आमने सामने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के माध्यम से तलाक तलाक तीन बार कहकर महिलाओं के मूल अधिकार छीन लिये गये हैं।इस नये तीन तलाक कानून आने के बाद मनमानी करने पर किसी हद तक रोक लग सकती है। लोकतांत्रिक देश में किसी के अधिकारों का हनन नही किया जा सकता है क्योंकि हमारे संविधान ने सभी को मूल अधिकार प्रदान किये हैं जिन्हें हनन करने का अधिकार किसी को भी नहीं दिया गया है।आजादी के बाद यह पहला अवसर है जबकि मुस्लिम महिलाओं के हितों की रक्षा करने की राजनैतिक पहल सरकार द्वारा की गयी है।यह तो तय है कि भाजपा तीन तलाक के नाम पर अपनी नयी राजनैतिक इबारत लिखने का प्रयास कर रही है।वह भले ही हिंदुत्व के ऐजेंडे के नाम पर सत्ता में आयी हो लेकिन अब वह सबका साथ सबका विकास करने का नारा देकर सर्वहारा समाज की पार्टी बनने की दिशा में जुटी है।

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