मुगलों की प्रेतात्माओं से पीछा छुड़ाने की कवायद-मुगलसराय बनाम दीनदयाल नगर


भारत से मुगलों की दुखदाई यादें विदा करने की कवायद के चलते भारत के चौथे सबसे बड़े रेलवे स्टेशन मुग़लसराय जंक्शन का नाम बदलकर दीन दयाल उपाध्याय नगर करने की तैयारी है. यह बदलाव ऊपरी तौर पर बहुत मामूली लगता है. राज्यों में कांग्रेस से इतर सरकारों ने यही किया. इसमें राजनीति के साथ स्थानीयता का दबाव भी रहा जिसमें कलकत्ता (कोलकाता), बंबई (मुंबई) और मद्रास बदलकर चेन्नई हो गया.ऐसा भारत और दुनिया के तमाम मुल्कों में होता रहा है. भारत में सभी सरकारें ऐसा करती रही हैं. कांग्रेस हुकूमत ने बेशुमार शहरों, सड़कों, पुलों और इमारतों के नाम बदले. हालाँकि अपवादों के तौर पर दिल्ली में किंग्स वे या क्वींस वे अब शायद ही कोई कहता हो. नई पीढ़ी के लिए वह राजपथ और जनपथ है. लेकिन कनॉट प्लेस इंदिरा और राजीव गांधी चौक नहीं बन पाया. कनॉट प्लेस ही रह गया.
आम जनता के लिए वह नए नाम अक्सर स्वीकार्य हो जाते हैं, जिनमें वे पूर्ववर्ती को मानसिक रूप से आक्रांता और अपना दुश्मन मानने लगते हैं. इसे इतिहास का बदलाव नहीं बल्कि इतिहास का न्याय समझते हैं.
दीन दयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख विचारक थे. कई बार गांधीवादी सोच वाले माने जाते थे. संदेहास्पद स्थितियों में 1968 में मुगलसराय स्टेशन पर उनकी मृत्यु हो गई थी. यह भुला दिया जाए कि इसी चंदौली में, जहां मुग़लसराय स्टेशन है, देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म हुआ था, तो स्टेशन का नाम बदलने में किसी को दिक्क़त क्यों होगी?
मुग़लसराय हुमायूं के समय से मुगलों की सराय थी. पूरब, उत्तर और दक्षिण की यात्राओं का केंद्र बिंदु. उनकी सेनाएं आते-जाते वहां रुकती थीं. सासाराम में शेरशाह सूरी से युद्ध के लिए दक्षिण से आई हुमायूं की सेना ने यक़ीनन वहीं डेरा डाला था. अंग्रेज़ों ने कलकत्ता को दिल्ली से जोड़ने के लिए 1880 में रेल लाइन बिछाई तब भी जगह का नाम मुग़लसराय रह गया. उसे बीस किलोमीटर दूर वाराणसी से जोड़ने के लिए डफ़रिन ब्रिज बना तो उसका महत्व और बढ़ गया.
आज़ादी के बाद डफ़रिन ब्रिज का नाम वाराणसी की एक अन्य विभूति महामना मदन मोहन मालवीय के नाम पर कर दिया गया.
मुग़लसराय जंक्शन या दीन दयाल नगर स्टेशन के मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समकालीन संगठनों विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल वगैरह ने कई साल पहले से उसे दीन दयाल नगर कहना और लिखना शुरू कर दिया था.
उनके प्रस्तावों में यही नाम रहता था और सामान्य बातचीत में भी. जितने नए कार्यक्रम बने, स्थान का नाम दीन दयाल नगर लिखा गया.
यह मात्र संयोग नहीं है कि गोरखपुर निवासी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में उत्तर प्रदेश मंत्रिपरिषद की बैठक में मुग़लसराय का नाम बदलने का प्रस्ताव आया तो फ़ौरन एकमत से स्वीकार कर लिया गया. केंद्र ने तत्काल मंज़ूरी दे दी. इस सिलसिले में अपने पूर्ववर्तियों के साथ गोरखपुर का योगी का अनुभव काम आया. in नामों के तबादले के चलते उर्दू बाज़ार का नया नाम हिंदी बाज़ार है, अलीनगर आर्यनगर हो गया है. मियां बाज़ार का नाम माया बाज़ार है और पड़ोसी इस्लामनगर ईश्वरपुर बन गया है. हुमायूं नगर काग़ज़ में भले न बदला हो, बोलचाल में अब हनुमान नगर है. इन बदलावों की तारीख़ निर्धारित नहीं की जा सकती और यह भी नहीं है कि सारे बदलाव एक साथ हुए हों. लेकिन इनमें राजनीति और राजनीतिज्ञों की भूमिका स्पष्ट है. खैर कुल मिलाके लोगों का मानना है कि ऐसे मुग़लमई नामों से जितनी जल्दी पीछा छूटे अच्छा है .