नमो टी वी पर आज की खबर बिस्तार

*मुद्दा गुजराती गांवों में रहा खेती पर केंद्रित*

*वहां भी राजस्थान की भांति पीड़ित है किसान ,सरकार की कृषि नीतियों से*

✍🏼गुजरात में बीजेपी को 22 साल बाद भी भले ही सरकार बनाने का मौका मिल गया हो, लेकिन ग्रामीण इलाकों में बीजेपी वोटरों को कम ही लुभा पाई है.

ग्रामीण इलाकों में बीजेपी को मिले वोटों को देखा जाए तो पार्टी को कम ही समर्थन मिला है।
कपास और मूंगफली की सबसे ज्यादा फसल वाले सौराष्ट्र की कुल 48 सीटों में से बीजेपी को 19 और कांग्रेस को 30 सीटें मिली हैं। यहां बीजेपी की जीत का अंतर 19,194 है तो कांग्रेस का 13,978 है।

चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने कई बार किसानों की आत्महत्या से लेकर कर्ज़ माफी का मुद्दा उठाया था।
कपास और मूंगफली की फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और किसानों की आत्महत्या के मुद्दे जमकर उठाए गए।
वहीं, शहरी वोटों की बात करें तो बीजेपी इनके सहारे सत्ता की सीढ़ियां चढ़ गई।

बीजेपी को 72 प्रतिशत की बढ़त शहरी इलाकों से ही मिली है जबकि कांग्रेस का ये आंकड़ा 89 प्रतिशत रहा।
[12/20, 1:55 AM] Josan: बीजेपी की सीटें कम होने के पीछे पाटीदार आरक्षण और फसलों का न्यूनतम मूल्य- ये दो बड़े कारण रहे. इन इलाकों में ज्यादातर पटेल समुदाय के लोग रहते हैं. फिर यहां पाटीदारों के साथ अन्य समुदायों के भी किसान हैं. उन्हें कपास और बाजार का न्यूनतम मूल्य नहीं मिल रहा था और इसे लेकर वो सरकार से नाराजगी जता रहे थे.
हुआ ये कि जब तक नरेंद्र मोदी गुजरात में सीएम थे तो वो कहते थे कि केंद्र सरकार के कारण एमएसपी में बढ़ोतरी नहीं हो रही. लेकिन, अब कहने के लिए कुछ नहीं था. इसका खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा.
एमएसपी के अलावा भी सरकार का दावा रहा है कि गांवों में 24 घंटे बिजली मिलती है, ये दावा ज़मीनी हकीकत से दूर है. किसानों की दूसरी मांग है कि वो खेतों के लिए पानी चाहते हैं. सरकार का कहना था कि नर्मदा की नहर गांव-गांव तक ले गए लेकिन उप नहर न होने के कारण लोगों को पानी नहीं मिल रहा था. फिर ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी भी लोगों में असंतुष्टि का कारण बनी है. ”

राहुल गांधी ने उठाए थे सही मुद्दे?
अर्थशास्त्र के प्रोफेसर कार्तिके भट्ट बताते हैं, ”गांव में बुनियादी सुविधाओं का बहुत अभाव है. यहां सड़क, अस्पताल और स्कूल नहीं है. इनके लिए लोगों को बहुत दूर जाना पड़ता है. खासकर के साबरकांठा और बनासकांठा में हालत बहुत बुरी है.
ऐसे में लोगों की नाराजगी इतनी बढ़ गई थी कि उन्हें लगा कि ये पार्टी 22 सालों से सत्ता में है, विकास की बात कर रही है और व्यापारियों का फायदा पहुंचा रही है लेकिन किसानों की हालत खराब है. बीजेपी के नए वादों का असर भी उन पर नहीं हुआ.

गुजरात राज्य का मुख्यमंत्री कौन होगा, यह दो लोग, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तय करते हैं।चुनाव से पहले अमित शाह ने यह घोषणा की थी कि मौजूदा मुख्यमंत्री *विजय रुपानी* ही अगले मुख्यमंत्री होंगे।
लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है।भाजपा को अपेक्षा से कम सीटें मिली हैं।इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ सकता है। गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत दयाल के मुताबिक मुख्यमंत्री तय किए जाने से पहले कई ऐसे फैक्टर हैं, जिस पर भाजपा विचार कर रही हैं।

"विजय रुपानी जैन समुदाय से आते हैं, जिसकी संख्या गुजरात में एक से दो प्रतिशत ही है. दूसरी बात ये है कि गुजरात का जो सौराष्ट्र इलाका है, यहां भाजपा बुरी तरह पराजित हुई है."
वो आगे कहते हैं, "इस स्थिति को सुधारने के लिए मैं मानता हूं कि गुजरात के अगले मुख्यमंत्री सौराष्ट्र से हो सकते हैं। और ज्यादा संभावना ये है कि पटेल समुदाय से ही मुख्यमंत्री बनाए जा सकते हैं।"
प्रशांत के मुताबिक भाजपा में उनके सूत्र बता रहे हैं कि मुख्यमंत्री पद के लिए केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के नाम पर भी चर्चा हो रही है।
वो कहते हैं, "मेरे अंदर के सूत्रों के अनुसार केंद्रीय मंत्री स्मृति के नाम पर भी चर्चा हो रही है। यह संभावना तब बन सकती है जब भाजपा मुख्यमंत्री पद किसी खास जाति को नहीं सौंपना चाहेगी।

*जिला हैडक्वार्टर पर राजकीय अस्पताल मे रोगियों का बुरा हाल*

*न झुकना चाहती सरकार और न आने को राजी डॉक्टर*

*बेपरवाही मे दोनो पक्षों का अड़ियल रवैय्या लेगा अनेकों रोगियों की जान*

(मंगलवार रात आठबजे)>👇🏽

हड़ताल पर चले गए डॉक्टरों के अलावा कई डॉक्टर मंगलवार को अवकाश पर चले गए। एक अन्य चिकित्सक डॉ. प्रमोद चौधरी भी अवकाश पर चले गए। इस प्रकार चिकित्सालय प्रबंधन को मंगलवार को व्यवस्थाएं संभालने में जोर आया।

*मेडिकल बोर्ड से होगी जांच*
इस बीच चिकित्सकों के मेडिकल अवकाश पर जाने के बाद चिकित्सा विभाग के निदेशक ने ऐसे डॉक्टरों की जांच मेडिकल बोर्ड से करवाने के निर्देश दिए हैं। प्रमुख चिकित्सा अधिकारी डॉ. सुनीता सरदाना के अनुसार चिकित्सा विभाग के निदेशक के निर्देशानुसार ऐसे डॉक्टरों की जांच के लिए मेडिकल बोर्ड गठित किया जाएगा।

ओपीडी रही सूनी
इस बीच चिकित्सालय की ओपीडी मंगलवार को सूनी रही। दिन में कक्ष तो खुले रहे लेकिन डॉक्टर इक्का-दुक्का कक्षों में ही नजर आए। चिकित्सालय में वैसे तो सामान्य दिनों की अपेक्षा काफी कम संख्या में रोगी आ रहे हैं लेकिन जो रोगी चिकित्सालय पहुंचे उनमें से अधिकांश को निराश लौटना पड़ा।

*वार्डों में पसरा सन्नाटा*
जहां एक ओर ओपीडी सूनी है वहीं वार्डों में भी सन्नाटा पसरा हुआ है। कई वार्ड तो पूरे के पूरे खाली पड़े हैं। वहीं कुछ वार्डों में इक्का दुक्का रोगी हैं, इन्हें संभालने के लिए नर्सिंग कर्मचारी ही हैं। दिन में एक दो बार उपलब्ध डॉक्टरों से ही रोगियों की जांच करवाई जा रही है।

*गुटबाजी अभी मिटी नहीं कॉंग्रेस में*

*इसी मनमर्जी ने जीत के नजदीक पहुंच कर भी हार का हाथ थाम लिया*
*केंद्र में सुदृढ़ मनोबल एवं परिपक्व पीएम चेहरा सामने नहीं लाया जाता ,तब तक सत्ता अभी दूर ही समझें*
*बीजेपी के पास देश का नेतृत्व करने वाला चेहरा अभी मौजूद है*

इस बार के गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 10 अहम नेताओं को हार का सामना करना पड़ा। इन नेताओं में शक्ति सिंह गोहिल, सिद्धार्थ पटेल और अर्जुन मोडवाढिया समेत कई अन्य लोग शामिल हैं।
अगर ये नेता जीत जाते तो कांग्रेस साधारण बहुमत के क़रीब पहुंच जाती।
इसी तरह राहुल गांधी को जेडीयू के लोगों, मुसलमानों और अल्पेश ठाकोर के समर्थकों को टिकट देने के लिए कहा गया और इन्हें टिकट मिले भी, लेकिन यह कांग्रेस के लिए मंहगा पड़ा।

इनमें से ज़्यादातर लोगों को हार का मुंह देखना पड़ा है. अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के नए प्रमुख राहुल गांधी के लिए यह सबक है कि जब तक पार्टी संगठन के रूप में जीत की आधी संभावना पक्की करने में कामयाब नहीं रहती है तब तक कांग्रेस के लिए जीत दूर की कौड़ी ही रहेगी.
ममता सिंह
चीफ बयूरो

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copy Protected by Chetan's WP-Copyprotect.