10 December, 2017 10:04

सीएम वसुंधरा राजे की खबरें नहीं छापने की कीमत चुकानी पड़ रही है राजस्थान पत्रिका को। सरकार ने विज्ञापनों पर लगाया ताला।
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राजस्थान पत्रिका ने प्रदेश की सीएम वसुंधरा राजे से जुड़ी खबरें प्रकाशित नहीं करने का जो फैसला किया उसकी अब पत्रिका को मोटी कीमत चुकानी पड़ रही है। पत्रिका ने यदि खबरों पर ताला लगाया है तो सरकार ने पत्रिका के विज्ञापनों पर ताला लगा दिया है। इन दिनों भास्कर सहित प्रमुख अखबारों में वसुंधरा सरकार के चार वर्ष पूरे होने पर विभागवार विज्ञापन प्रकाशित हो रहे हैं। ये विज्ञापन भी पूरे और आधे आधे पृष्ठ के हैं। रंगीन होने की वजह से विज्ञापन दर भी डबल है। ऐसे में सभी विज्ञापन पत्रिका को नहीं मिल रहे हैं। हालांकि खबरें नहीं छापने की घोषणा पत्रिका के प्रधान सम्पादक और मालिक गुलाब कोठारी ने सम्पादकीय लिखकर की। लेकिन सीएम राजे ने इशारा कर ही विज्ञापन पर रोक लगवा दी। कहा जा रहा है कि सलाहकारों ने सीएम राजे को सलाह दी कि अब पत्रिका हमारी खबरें ही नहीं छाप रहा है तो हम विज्ञापन क्यों दें? सलाहकारों की सलाह मैडम को पसंद आई और सरकार के जनसम्पर्क निदेशालय में बैठे अधिकारियों को इशारा कर दिया गया। अब सब देख रहे हैं कि सरकार की चार वर्ष की उपलब्धियों वाले विज्ञापन पत्रिका में प्रकाशित नहीं हो रहे। मुझे नहीं पता कि विज्ञापनों पर ताला लगने से पत्रिका को कितने करोड़ रुपए का प्रतिमाह नुकसान होगा, लेकिन इतना जरूर है कि अब पत्रिका को मोटी कीमत चुकानी पड़ रही है। सब जानते हैं कि पत्रिका राजस्थान का सबसे बड़ा अखबार है। यह भी सही है कि आज पत्रिका जिस मुकाम पर खड़ा है, उसमें एक राज्य सरकार के विज्ञापन नहीं मिलने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन इस स्थिति को लोकतांत्रिक व्यवस्था में उचित नहीं माना जा सकता। मेरा जैसा अदना सा कलमघसीट तो दो महारथियों के बीच मध्यस्थता भी नहीं कर सकता, लेकिन वसुंधरा राजे और गुलाब कोठारी के जो सलाहकार हैं उन्हें सकारात्मक सोच के साथ तालों की चाबी ढूंढनी चाहिए। यहां यह उल्लेखनीय है कि सीआरपीसी में संशोधन कर भ्रष्ट कार्मिकों व राजनेताओं को बचाने तथा मीडिया को फंसाने वाले अध्यादेश और बिल के विरुद्ध ही पत्रिका ने सीएम राजे की खबरों के बहिष्कार का फैसला किया है। हालांकि अब अध्यादेश प्रभावहीन हो गया है तथा विधानसभा में रखा बिल प्रवर समिति को भेज दिया है, ऐसे में बीच का कोई रास्ता निकाला जा सकता है। हालांकि पत्रिका को विज्ञापन मिलने या नहीं, इससे मेरा कोई सरोकार नहीं है, लेकिन मैं पिछले 35 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय हंू इसलिए इस विवाद की गंभीरता को समझता हंू। चमचे भले ही यह दावा करें कि सीएम राजे पत्रिका देखती ही नहीं हैं, लेकिन चमचों को यह समझना चाहिए कि प्रदेश की जनता पत्रिका पढ़ती

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